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सिर्फ तुम माहे सितंबर जब भी आता है तुम्हारी यादें

सिर्फ तुम
माहे सितंबर जब भी आता है
तुम्हारी यादें अनायास ही
और भी गहरी होने लग जाती है
वैसे तो तुम हरपल बेहद याद आती हो
मगर ये सितंबर याद दिलाता है
तुम्हारे झुमके के नीचे धीरे से छूकर
कान के पास झुमके की कील से आए
दाग को देखने के बहाने
तुम्हें और तुम्हारे झुमके को 
देखना याद है।
और उन जुल्फों से जलन भी
होने लगी थी
जो जबरजस्ती तुम्हारे झुमके में फँसकर
तुमको तंग कर रहे थे
मगर तुम्हारी उंगलियाँ जब जुल्फों को
सँवारती थी तो उस पल को यादकर
उनमें खुद को खोकर
तुम्हारी ही एक तलाश करता हूँ।
माहे सितंबर जब भी आता है
तुम्हारी यादें अनायास ही
और भी गहरी होने लग जाती है।

© गौरव उपाध्याय 'एक तलाश' #सिर्फ_तुम 
#झुमका 
#माह 
#सितंबर
सिर्फ तुम
माहे सितंबर जब भी आता है
तुम्हारी यादें अनायास ही
और भी गहरी होने लग जाती है
वैसे तो तुम हरपल बेहद याद आती हो
मगर ये सितंबर याद दिलाता है
तुम्हारे झुमके के नीचे धीरे से छूकर
कान के पास झुमके की कील से आए
दाग को देखने के बहाने
तुम्हें और तुम्हारे झुमके को 
देखना याद है।
और उन जुल्फों से जलन भी
होने लगी थी
जो जबरजस्ती तुम्हारे झुमके में फँसकर
तुमको तंग कर रहे थे
मगर तुम्हारी उंगलियाँ जब जुल्फों को
सँवारती थी तो उस पल को यादकर
उनमें खुद को खोकर
तुम्हारी ही एक तलाश करता हूँ।
माहे सितंबर जब भी आता है
तुम्हारी यादें अनायास ही
और भी गहरी होने लग जाती है।

© गौरव उपाध्याय 'एक तलाश' #सिर्फ_तुम 
#झुमका 
#माह 
#सितंबर