बचपन की यारी बड़ी मासूम ज़ालिमा थी हमारी बचपन की यारी,, छोटे छोटे से सपने थे बस्तानों में हमारी तन से लिपटी मिटटी भी लगतिथि तब प्यारी नल का पानी पयास बुझा ता था तब हमारी साथ अजूबे जैसी थी अनोखी यारी हमारी दो पहर की धुप तब लगती अब्र सी तन में हमारी अवकात न बताया करती थी तब लिबास हमारी न पूछ कर हुई थी दोस्ती की कैसी है जात तुम्हारी उसकी माँ को माँ कहे ता था और वो।मेरी अम्मी को अम्मी दुलारी बड़ी प्यारी मासूम ज़ालिमा थी हमारी बचपन की यारी !!!! #bachpankiyaari