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सूखी मिट्टी सी थी, मैं हवा से भी, उड़ जाया करती थ

सूखी मिट्टी सी थी,
मैं हवा से भी,
 उड़ जाया करती थी,

प्रेम की इन बूंदों से 
खुद में मुझको बांध लिया है।

मुझ तक आने वाली हर हवा को 
दूर से टाल दिया है।

जी हां मेरे साथी, 
आपने
एक नए आकार में ढाल लिया है।।

©Kirti Pandey
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