परिस्थितियों का गुलाम है आदमी.. ब्राह्य आवरण में खुशी का मुखौटा लगा, कभी मां का आंचल पकड़ रोना चाहता है तो कभी बहन से भी सांत्वना चाहता है आदमी.. तो कभी अंजाने में हुए भूलों का प्रायश्चित करने को बीबी का भी कंधा ढूंढता है आदमी.. चेहरे पर मुस्कुराहट लिए, उल्टी धारा में अश्रु बहा, भीतर ही भीतर रो शांत हो लेने को विवश है ये आदमी.. औकात से ऊंचे सपने पूरा करने को अपनों के, अपने में कुढ़ता घुटता रहता है ये आदमी.. अंतिम सांस की डोर तक.. ख्वाईशे सब की पूरी करने की जद्दोजहद में जीने को मजबूर है आदमी...🙏🙏🙏 आदमी..