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मन की पीङा किस से कह दूँ, कह कर बात पराई होती ।

मन की पीङा किस से कह दूँ, 
कह कर  बात पराई होती ।
किन्तु कहना ही पङता है,
 आँख बेचारी कब तक रोती।।
मन के राज उसी से कहना ,
जो राज संभाले जैसे गहने ।
कहने से मन हल्का लगता,
मन की पीङा भी कम होती ।।
यदि ऐसा कोई मित्र मिला है,
जो तेरे राज को राज ही रखे ।
गहने की औकात नहीं कुछ,
मित्र मूल्य तब कोटि-कोटि ।।
पुष्पेन्द्र"पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  मित्र और राज

मित्र और राज #कविता

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