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आपसी रिश्तों को भी कोई डोर तभी तक उसे बांधता है, ज

आपसी रिश्तों को भी कोई डोर तभी तक उसे बांधता है,
जब तक कोई अपना निजी निहित स्वार्थ नहीं साधता हैं।

जब कभी कोई पुरानी घटित ऐसी बात इस ज़हन में कहीं अटकता है,
मनुष्य उसे सुलझाने में खुद भी बेचैन होकर ईधर उधर ही भटकता है।

जिन्दगी भी हर रोज‌ नये मोड़ पर एक न‌ई कहनी लाता है,
रोज कुछ न‌ए अध्याय हमसे जुड़ते कुछ पीछे छुट जाता है।

हमें कहा पता था कि वह इतनी छोटी छोटी बातों को लेकर भी इतने बदल जाएंगे,
लगता है उनके सारे वादे खोखले और कागज़ी है,
ताउम्र की छोड़ो उनसे पुछो क्या वह एक दिन भी पूरी तरह मेरा साथ निभाएंगे।

मैं भी अब आजीवन शुक्रगुजार रहूंगा उस हर एक शख्स का,
जो मुझे इस हाल में भी कहीं अकेला छोड़कर किसी और से जाकर जुड़े,
मैं दरखास्त करुंगा ए जिन्दगी अगर मैं कहीं जहन्नुम में भी रहूं,
मेरी बदहाली मुझे मंजूर मगर कभी भूलकर के भी उनकी तरफ़ न मुंडे़।
आशुतोष शुक्ल (उत्प्रेरक)

©ashutosh6665 #Drown #poem #Poet
आपसी रिश्तों को भी कोई डोर तभी तक उसे बांधता है,
जब तक कोई अपना निजी निहित स्वार्थ नहीं साधता हैं।

जब कभी कोई पुरानी घटित ऐसी बात इस ज़हन में कहीं अटकता है,
मनुष्य उसे सुलझाने में खुद भी बेचैन होकर ईधर उधर ही भटकता है।

जिन्दगी भी हर रोज‌ नये मोड़ पर एक न‌ई कहनी लाता है,
रोज कुछ न‌ए अध्याय हमसे जुड़ते कुछ पीछे छुट जाता है।

हमें कहा पता था कि वह इतनी छोटी छोटी बातों को लेकर भी इतने बदल जाएंगे,
लगता है उनके सारे वादे खोखले और कागज़ी है,
ताउम्र की छोड़ो उनसे पुछो क्या वह एक दिन भी पूरी तरह मेरा साथ निभाएंगे।

मैं भी अब आजीवन शुक्रगुजार रहूंगा उस हर एक शख्स का,
जो मुझे इस हाल में भी कहीं अकेला छोड़कर किसी और से जाकर जुड़े,
मैं दरखास्त करुंगा ए जिन्दगी अगर मैं कहीं जहन्नुम में भी रहूं,
मेरी बदहाली मुझे मंजूर मगर कभी भूलकर के भी उनकी तरफ़ न मुंडे़।
आशुतोष शुक्ल (उत्प्रेरक)

©ashutosh6665 #Drown #poem #Poet