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रिश्ते स्वार्थ का दूसरा नाम है प्रत्येक का अपना अप

रिश्ते स्वार्थ का दूसरा नाम है प्रत्येक का अपना अपना स्वार्थ होता उसी स्वार्थ की बुनियाद पर टिका हुआ हर एक रिश्ता होता है जब हम रिश्तो का इंतिहान लेते हैं या अपने जीवन में उन्हें अजमा ते हैं तो वे हमारे वक्त पर काम नहीं आते तभी से हमें अपने पराए लगने लगते हैं कार्य प्रथम पाठशाला में सीखे लेते तो जीवनशाला में भ्रम में नहीं रहते इसलिए आपको कुरुक्षेत्र की अर्जुन माय गीता का अध्ययन करना जरूरी क्योंकि यह अनुभव तो श्री कृष्ण हजारों वर्ष पहले ही दुनिया के सामने रख दिया लेकिन हम तब समझ पाते जब हम पर भी बीती हो

रिश्ते स्वार्थ का दूसरा नाम है प्रत्येक का अपना अपना स्वार्थ होता उसी स्वार्थ की बुनियाद पर टिका हुआ हर एक रिश्ता होता है जब हम रिश्तो का इंतिहान लेते हैं या अपने जीवन में उन्हें अजमा ते हैं तो वे हमारे वक्त पर काम नहीं आते तभी से हमें अपने पराए लगने लगते हैं कार्य प्रथम पाठशाला में सीखे लेते तो जीवनशाला में भ्रम में नहीं रहते इसलिए आपको कुरुक्षेत्र की अर्जुन माय गीता का अध्ययन करना जरूरी क्योंकि यह अनुभव तो श्री कृष्ण हजारों वर्ष पहले ही दुनिया के सामने रख दिया लेकिन हम तब समझ पाते जब हम पर भी बीती हो

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