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घर  तो  हैं  अब घर नहीं, सिर्फ ईंटों के मकान हुए।

घर  तो  हैं  अब घर नहीं,
सिर्फ ईंटों के मकान हुए।

मिट रहे अब रिश्ते सभी,
धन ही बस पहचान हुए।

मोल-भाव  शुरू हुआ है,
ये रिश्ते  भी  दुकान हुए।

अहमियत कोई न समझे,
सब के  सब  नादान हुए।

रिश्तों के बल  पर ही तो,
लोग  जग  में महान हुए। #विश्वासी #रिश्तों_की_अहमियत
घर  तो  हैं  अब घर नहीं,
सिर्फ ईंटों के मकान हुए।

मिट रहे अब रिश्ते सभी,
धन ही बस पहचान हुए।

मोल-भाव  शुरू हुआ है,
ये रिश्ते  भी  दुकान हुए।

अहमियत कोई न समझे,
सब के  सब  नादान हुए।

रिश्तों के बल  पर ही तो,
लोग  जग  में महान हुए। #विश्वासी #रिश्तों_की_अहमियत