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बरस जाये कभी तो मुझपर भी चाहत की बहुत सूखा-सुखा दि

बरस जाये कभी तो मुझपर भी चाहत
की बहुत सूखा-सुखा दिल की ज़मीन हैं
मैं सदियों से यूँ ही, जीता चला हूँ 'पारस'
मगर,इस जीने में,ज़िन्दगी, एक कमी है
नहीं तू है, हमकदम तो,अधूरा सफर ये
हमराही बहुत है, मगर सब अजनबी हैं
और बेचैन रहे हैं, ख़्वाहिशें हर दिल की
यही दिल की ख़लिश, रूह की तिश्नगी है

©paras Dlonelystar
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