हमने जब उस चाँद को देखा चाँद के आसपास कोई न था चाँद गहरी ख़ामोशी में खो गया मैं इन्तज़ार करता ही रहा । चाँद को हजारो सितारे मिले, ख़्वाबों में मैं तड़पता ही रहा चाँद को इक चाँदनी भी मिली सितारों के संग चमकता रहा । तिज़ारत बनाके मुहब्बत को ख़यालों में सबको ठगता रहा किनारे पे दिल मेरा तड़प तड़प के क़रीब उनको बुलाता रहा । इक चाँदनी के कारण ही चाँद क्यों नाम बदलकर मिलता रहा हमें हक़ीक़त की न कोई ख्वाहिश फिर भी अंधेरा बढ़ता गया । 🌼 बज़्म ए इख़लास