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आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज

आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़े-बुझी हुई बाती सुलगाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                                                         हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वर्तमान के मोंह जाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                   आहुति‌ बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं आओ फिर से दिया जलाएं

©Shantanu Tripathi
  अटल बिहारी वाजपेई की कविता
#letter
आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़े-बुझी हुई बाती सुलगाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                                                         हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वर्तमान के मोंह जाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                   आहुति‌ बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं आओ फिर से दिया जलाएं

©Shantanu Tripathi
  अटल बिहारी वाजपेई की कविता
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