सीमित रहना एक कुशल आचरण है अनावश्यक दखल भ्रष्टाचार है, और भ्रष्टाचार—अनुशासन हीनता, अविश्वनीयता, प्रपंच, सत्ता लोलुपता, फीताशाही, गलत बयानी, ढीठता, अस्पष्टता, मत की नीति, मत का गणित, लूट और लूट की छूट इत्यादि, इन तत्वों पर राज की नीति राजशाही है; लोकतंत्र तो कतई नहीं। भ्रष्ट+आचार की ऐसी बेसुधता को घर कराना राजनीति है या भ्रष्टाचार का नाम भर सुनते ही लोक का उठ जाना। संविधान भी सीमित है और हमारी विद्रोही मिट्टी भी। सीमित रहना एक कुशल आचरण है अनावश्यक दखल भ्रष्टाचार है,