दो घरों की दुश्मनी का कैसा रंग रूप है, मजहबी विवाद है या जिस्म की ये भूख है। क्या सही है क्या गलत इतना नहीं क्या ज्ञान है, नक़ाब हमसा है मगर, अंदर से वो हैवान है। वो चीथड़े उड़ा रहे हैं फूल की जो शान से, मां बहन औ बेटियां उनकी भी हैं ये जान के। कसूर माँ का इतना है कि बेटियां हैं जन रहीं। जो बदनुमे लिबास की शिकार आज बन रहीं। एक ही तो गहना था, है जिसका नाम आबरू, धूं धूं करके आग में है सारी की सारी जल गई वो बिन पंख उड़ने की थी ख्वाहिशें लिए हुए, अब या तो घर कैद है या खाख में वो मिल गयी। कौन सा ये इल्म है, किस क़िताब में लिखा हुआ, लिहाज़, ख़ौफ और डर हवस में है दबा हुआ। जो शशक्त थी कभी वो आज बस इक नारी है, निवाला नहीं है वो, वो तुम्हारी जिम्मेदारी है। ...GARग #नारी #नारीहैजिम्मेदारी #nojoto #kavishala #nojotopoetry #poetry #mybest #alokgargkumarshukla