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मेरी माते... कितना दूर कर दिये देखकर और कुछ भी नह

मेरी माते...

कितना दूर कर दिये
देखकर और कुछ भी नहीं कह पाएं
जो हर छोटी-बड़ी बातें बताती थी
अपनी आंसू मेरे सामने खोलती थी
आज सबसे अकेली एक कोने में पड़ी है
मेरी माते अब मुझे से दूर पर है


भूल गया भला कैसे मुझे से कहेंगे
बार बार धिकार जो मुझे से मिला है
इसलिए ख़ुद को अपने से जला रहा हूं
इसलिए आज चुप चुप कर रो रहा हूं

©अनजान राही
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