आज की स्वरचित रचनाएँ नैसर्गिक होती बरसात है,साथ बर्फ और धूप कोई पाता बुद्धि विवेक, कोई पाता है रूप चार दिन खेल ये जीवन, मत करना रे अभिमान कोई नंगे पैर चलता है,कोई पकड़ता है वायुयान कुएँ का मेढक टर्र टर्र करता, शांत रहती व्हेल विशाल कोई थककर भी मुस्काता, कोई यूँ ही पड़ जाता निढाल तराजू के पलड़े दोनों तरफ झुकते, इस बात का धरो ध्यान तलवार तो चोट करती, बुद्धिमान रखते जिसे सदा म्यान ©Kamlesh Kandpal #Dohe_In_Hindi