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चंद शामों के सवेरे कहां होते हैं जब चल दिए तो बसेर

चंद शामों के सवेरे कहां होते हैं
जब चल दिए तो बसेरे अलग होते हैं 
रहन-सहन-वहन सब कुछ अलग है
कह दो तो क्या समझा, ना तर्पण है
वस्तुत: फासले मिटाती पगडंडियों पर
घोंसलों से दूर घरौंदें दीवाली सजते हैं
बनकर मन के क्या खूब कहते हैं
दूर घर से यहां मजबूरी में रहते हैं
पर्व त्योहारों पर गले मिलते हैं
वरना तो जानिए "अपने" विकेंड 
पर भी कभी-कभार ही मिलते हैं
नहीं दु:ख ये कोई, यथार्थ समझते हैं! कुछ घंटें हुए निकले..
रास्ते अभी टटोलने हैं,
अगली मंजिल की डगर
वही घर फिर खोजते हैं!

्🏠🥺💞

चंद शामों के सवेरे कहां होते हैं
चंद शामों के सवेरे कहां होते हैं
जब चल दिए तो बसेरे अलग होते हैं 
रहन-सहन-वहन सब कुछ अलग है
कह दो तो क्या समझा, ना तर्पण है
वस्तुत: फासले मिटाती पगडंडियों पर
घोंसलों से दूर घरौंदें दीवाली सजते हैं
बनकर मन के क्या खूब कहते हैं
दूर घर से यहां मजबूरी में रहते हैं
पर्व त्योहारों पर गले मिलते हैं
वरना तो जानिए "अपने" विकेंड 
पर भी कभी-कभार ही मिलते हैं
नहीं दु:ख ये कोई, यथार्थ समझते हैं! कुछ घंटें हुए निकले..
रास्ते अभी टटोलने हैं,
अगली मंजिल की डगर
वही घर फिर खोजते हैं!

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चंद शामों के सवेरे कहां होते हैं
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