तुमको है सौगंध, आज फिर जलने की इन भ्रातिम लहरों से डटकर, चलायमान पवनो से लड़कर, अडिग खड़े तुम अमर हिंद में प्राण देश हित में करने की । तुमको है सौगंध आज फिर जलने की ।। फैली मतभेदों की जड़ता , मिटा रहे ये, भारत की गुरुता एक माला के मोती बनकर , एक सूत्र में चलने की । तुमको है सौगंध, आज फिर जलने की ।। चंहुदिश अब है,विघ्न भरा सब जनमानस रोदन है पराश्रव्य, दु:ख रंजित जन के मन में, नव ज्वाला से दुख हरने की । तुमको है सौगंध,आज फिर जलने की ।। एक दिया देश खातिर