****प्यार और तकरार*** पास बैठो, लड़ती है, दूर जाओ ,डरती है। खुद को हिटलर, गुलाम मुझे समझती है। हर बात पर सवाल, जवाब कहाँ सुनती है? गुनाह जाने बगैर, सजाए-फरमान करती है। शक की हद ऐसी, कसम बगैर बात,नहीं बनती है, जो कर दो इंकार, सिवाय तलाक दूजी,बात नहीं होती है। खुद ही को सिर्फ ज्ञानी, मूर्ख मुझे समझती है। गुस्से की है आदी, हमेशा आग ही उगलती है, बाहर हूँ दरोगा, घर में मुलजिम मुझे बताती है, पर सच तो ये है, मैं हूँ उसका और वो सिर्फ मेरी है, सुख-दुख की साथी है, घर की ख़ुशी का दीप जलाती है, लक्ष्मी है मेरे घर की, खुद से ज्यादा,मेरा ख्याल रखती है, सुना है!होता है जहाँ प्यार, वही तकरार होती है । नहीं होता है जहाँ प्यार, वहाँ बात भी कहाँ होती है? भगवान करे!ऐसी ही तकरार चलती रहे, ताकि, हमारे प्यार की गाड़ी दौड़ती रहे। ***नवीन कुमार पाठक *** ©Kumar Manoj धर्मपत्नी #withyou