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#5LinePoetry बोल कि हक़ मैं छीन के लूँगा, झूठ को सी

#5LinePoetry बोल कि हक़ मैं छीन के लूँगा, झूठ को सीधे झूठ कहूँगा,
बोल की पानी खौल रहा है, बोल ज़माना बोल रहा है।
बोल क़िताबें राख़ हुई हैं, उठी तो गर्दन चाक हुई है,
बोल कि कातिल भीड़ हुई है, बोल दे जितनी पीर हुई है।
बोल दे लीडर ख़ुदा नहीं है, हक़ में तुझसे जुदा नहीं है,
बोल नई आवाज़ उठा के, होंठ नहीं ये पेट बजा के।
बोल दे तू मजबूर नहीं है, बोल दे दिल्ली दूर नहीं है,
लोकतंत्र ये नाच नहीं है, तू था बंदर आज नहीं है।
बोल दे सत्ता मोल बिकी है, बोल तुझी पे नज़र टिकी है।।

©MANJEET SINGH THAKRAL बोल कि हक़ मैं छीन के लूँगा, झूठ को सीधे झूठ कहूँगा,
बोल की पानी खौल रहा है, बोल ज़माना बोल रहा है।
बोल क़िताबें राख़ हुई हैं, उठी तो गर्दन चाक हुई है,
बोल कि कातिल भीड़ हुई है, बोल दे जितनी पीर हुई है।
बोल दे लीडर ख़ुदा नहीं है, हक़ में तुझसे जुदा नहीं है,
बोल नई आवाज़ उठा के, होंठ नहीं ये पेट बजा के।
बोल दे तू मजबूर नहीं है, बोल दे दिल्ली दूर नहीं है,
लोकतंत्र ये नाच नहीं है, तू था बंदर आज नहीं है।
#5LinePoetry बोल कि हक़ मैं छीन के लूँगा, झूठ को सीधे झूठ कहूँगा,
बोल की पानी खौल रहा है, बोल ज़माना बोल रहा है।
बोल क़िताबें राख़ हुई हैं, उठी तो गर्दन चाक हुई है,
बोल कि कातिल भीड़ हुई है, बोल दे जितनी पीर हुई है।
बोल दे लीडर ख़ुदा नहीं है, हक़ में तुझसे जुदा नहीं है,
बोल नई आवाज़ उठा के, होंठ नहीं ये पेट बजा के।
बोल दे तू मजबूर नहीं है, बोल दे दिल्ली दूर नहीं है,
लोकतंत्र ये नाच नहीं है, तू था बंदर आज नहीं है।
बोल दे सत्ता मोल बिकी है, बोल तुझी पे नज़र टिकी है।।

©MANJEET SINGH THAKRAL बोल कि हक़ मैं छीन के लूँगा, झूठ को सीधे झूठ कहूँगा,
बोल की पानी खौल रहा है, बोल ज़माना बोल रहा है।
बोल क़िताबें राख़ हुई हैं, उठी तो गर्दन चाक हुई है,
बोल कि कातिल भीड़ हुई है, बोल दे जितनी पीर हुई है।
बोल दे लीडर ख़ुदा नहीं है, हक़ में तुझसे जुदा नहीं है,
बोल नई आवाज़ उठा के, होंठ नहीं ये पेट बजा के।
बोल दे तू मजबूर नहीं है, बोल दे दिल्ली दूर नहीं है,
लोकतंत्र ये नाच नहीं है, तू था बंदर आज नहीं है।