तेरे मेरे दरमियाँ कभी कोई भी दूरी ना हुई होती। अगर बीच में बेरहम जमाने की मजबूरी ना होती। ना तड़पता दिल यूँ मेरा, ना चैन-ओ-सुकून खोता, ना लगाते दिल हम तुमसे न मेरी धड़कने यूँ रोती। चाहते हैं हम तुझको आज भी दिल की गहराइयों से, गर समझ लेते मेरे जख्मों को तो आँखें नम न होती। तोड़ देते जमाने की सारी रस्मों-रिवाजों की दीवारें, एक बार हिम्मत करके तुम हमारे साथ चलीं होती। कर देता हँसकर जान निसार "एक सोच" मैं तुम पर, हमारे वादों पर एतबार करके साथ में तो खड़ी होती। इस ग़ज़ल प्रतियोगिता का शीर्षक है " दूरी" गजल प्रतियोगिता -02 साहित्य कक्ष 2.0 आप सभी का स्वागत 💐 है अनुशीर्षक में