लेखक की सोच की कोई सरहद नहीं उसकी सोच वहां तक जाती है जिसको ना समझे ज़माना ना ही उसकी नज़र की गहराई का पैमाना कोई वो देख लेता है वो भी, जो चाहे ज़माना छुपाना कलम से पिरोंता है शब्दों की माला यूं की जो पढ़े हो जाए लिखने के अंदाज का दीवाना काबिले-गौर है उसका ख़ुद को ज़माने से छुपाना ©Dr Supreet Singh #लेखक_की_सोच