जनहित की रामायण - 67 जनतंत्र का अपहरण हो गया इसकदर ! जन जन के हालात अब हो रहे दरबदर !! जर्जर भी नहीं रहे अब धराशायी हो गये ! चारों खंबे तोड़फोड़ हुकुम राजाशाही हो गये !! सर्वोच्च कह चुका वी वी पैट जरुरी है ! अर्थात ईवीएम में घालमेल की गुंजाईश पूरी है !! अब गिनती में आनाकानी मतलब दाल में है काला ! सर्वोच्च ने अपने मुंह पे क्यूं लगा रक्खा है ताला !! कार्यपालिका पे अंकुश में लोकपाल है कारगर ! कहाँ है लोकपाल आजकल नहीं कोई खोज खबर !! विधायिका में नृशंस अपराधियों की है अपार तादाद ! आखिर ऐसे कैसे होगा, कानूनी राज जिन्दाबाद !! अदालतों में भी डर और लालच ने कर लिया घर ! रिक्त पदों की त्रासदी से न्याय न सुलभ न समय पर !! इन्तजार करना पड़ जाता लोगों को उम्र उम्र भर ! अत: न्याय के लिये जन अपराधियों/नेताओं पे निर्भर !! अधिकतर पत्रकारिता हो गयी अब अंतर्वस्त्र विहीन ! शर्म लाज बेच खायके, बस तलवे चाटन में तल्लीन !! इनके मालिक उनके मालिक दोनों के मालिक वही ! जिनकी सत्ता में गलती दाल, जिनका ही जमता दही !! जनहित रक्षण का आखिरी नाड़ा, विपक्ष के है जिम्मे ! विपक्षी अपने अपने नाडे सम्भालने में ही दिखते उलझे !! जनता को आपस में बाँट के, ये मौज उड़ा रहे मिल बाँट के ! सत्ता की इतनी मस्ती असंभव, बगैर विपक्षी साठगांठ के !! हे राम ... -आवेश हिंदुस्तानी 02.05.2022 ©Ashok Mangal #AaveshVaani #JanhitKiRamayan #JanMannKiBaat #janhit #SunSet