बदलाव सियासत की सुकून लिये चेहरे का मुस्कान क्यों बदल रहा है? दिन पर दिन ये इंसान क्यों बदल रहा है? दुहाई देते थे जो धर्म और नीति की, आज उन्हीं का ईमान क्यों बदल रहा है? काली करतूतों को छिपाने के लिये, लोगों का दूकान क्यों बदल रहा है? गाली देते थे जिनको कल तक, आज उन्हीं के लिये जुबान क्यों बदल रहा है? आम से खास बन गये थे जो, फिर उनका पहचान क्यों बदल रहा है? अब तक जी हजूरी करते थे जिनकी, अचानक से ही निशान क्यों बदल रहा है? मची है हलचल सियासी गलियारों में, हड़बड़ी में रोज फरमान क्यों बदल रहा है? बिगुल बजी नहीं अभी चुनाव की, दिग्गजों का मैदान क्यों बदल रहा है? कहे 'विश्वासी' विश्वास से,हो न हो, पंचवर्षीय सत्ता का कमान बदल रहा है। #काव्य_संग्रह_नवांकुर में #प्रकाशित