लगा कर आग इधर सीने में मज़ा है उनको उधर जीने में नींदे न उड़ जाए कही बचालो रात भर जागे है तेरे खयालों में सुबह तक न उठे तो समझना अभी तलक डूबे है शराबों में गिर कर संभल न पाया अब तक सायद गिर गया हूं निगाहों में उनका भी इक खाब था वर्षों से मुझे जीना है बस तेरी पनाहों में इतने गैर हो जाएंगे मुझसे दूर होकर उनकी रात कटेगी गैर की बांहों में अब तो मर रहा हूं ये सोचकर उनके बीना जीना है सिर्फ आहों में ✍ अमितेश निषाद ( सुमीत ) लगा कर आग इधर सीने में मज़ा है उनको उधर जीने में नींदे न उड़ जाए कही बचालो रात भर जागे है तेरे खयालों में सुबह तक न उठे तो समझना अभी तलक डूबे है शराबों में