सफ़हा दर सफ़हा पलटते एक उम्र का बीत जाना, मिला कुछ भी नही बस बहाना था हमे आजमाना, यूँ हमे भी इश्क इतनी आसानी से नही होता दोस्त, कुछ नज़रों का फेर उस पर तेरा हँसकर इतराना, इस दिल के मुश्तरी तो बहुत आये और चले गये, आख़िर में इस दिल का फिर तेरे हाथों बिक जाना, ख़ूब बचाया ज़ालिम तेरी नज़रों से मेरे इस दिल को, न चला जोर ख़ुद पर और धीरे धीरे यूँ तेरा हो जाना, तुम तो एक बस ख्वाब थी इस हसीं सी क़िताब का, आँखे खोली और आख़िरी पन्ने पर सब खत्म हो जाना। ❤ प्रतियोगिता- 390 ❤आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा विषय है 👉🏻🌹"आख़री पन्ने पर"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I