पलक हो या पलकें हो, तेरे आँचल की छाँव हो, सुंदर है सुशील है, तेरी गोद में मैं जो हूँ, माँ तेरी ममता तेरी छायाँ, है,जो कोयले की काया, काया नहीं ये साया है, मेरे जीवन की मोह माया है, तेरी गोद में सोता था, तेरी गोद में खेलता था, चंचल सी मधुर सी कोमल सी शीतल तू है, कठोर सी नरम सी मधुर सी तेरी माया है, संग रहना साथ रहना तुझसे यहीं कहना है, हो कर घोर अँधेरा भी यही मुझें कहता है, साया हे तू,काया हे तू, तेरी ही है दुनिया, मेरे हाथो में जो तेरा हाथ था, संग-संग जब बचपन में मैं तेरी उंगली जो थाम कर चला था, अब भी अँधेरा हे मेरे जीवन में कहीं न कहीं, फिर भी हम ख़ुशहाल है, तेरे साथ तेरे पास जो हे हम, तेरे ही बच्चे है, तेरे ही लाडले है, मन,मंदिर,का मान तू, तुझसे जो पहचान मिली, सारी दुनिया अब देख रही, क्या था,मैं और क्या से क्या अब हो गया, तेरे आशीर्वाद से मैं ओर आकर्षित हो गया! स्वचरित रचना हार्दिक महाजन ©Hardik Mahajan शीर्षक- माँ दिनांक - 9/05/2023 पलक हो या पलकें हो, तेरे आँचल की छाँव हो, सुंदर है सुशील है, तेरी गोद में मैं जो हूँ, माँ तेरी ममता तेरी छायाँ,