तुम आज खुश हो जो मिला तुम्हे उसके लिए, सजदे तुम्हारे है बेशक, लेकिन दुआ हमारी है। महलों की चाहत तुम्हारी कैसे पूरी करता भला, मुझ गरीब के हिस्से में तो बस चार दिवारी है। देख कर अनदेखा करना हमसे नही होता ये, हां तुम कर लेते हो क्योंकि फितरत तुम्हारी है। इश्क उससे और वक्त गुजरते थे हमारे साथ, शरीफों के साथ ये बड़ी अच्छी होशियारी है। अब मिला है हिज़्र तो रोने चले आए मेरे पास, कंधे खाली नहीं है मेरे, इन पर अब जिम्मेदारी है। तुम्हारी रातें तो कट रही थी सुकून से बाहों में, हमने अपनी रातें सब "अक्ष" धुएं (सिगरेट) में गुजारी है। ©Aksh Bisotiya #my #poem #Love #Life #Book