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आज हवाओं का रूख ऐसा है बदला मौत का मंज़र हर तरफ़ ह

आज हवाओं का रूख ऐसा है बदला
मौत का मंज़र हर तरफ़ है फ़ैला!
जन- जन से हो गया है अकेला
हुआ है कैसा ये मौसम अलबेला!!

सबको ही जाना है एक दिन अकेला
पर विधाता ने कौन-सा खेल ये खेला!
ये दृश्य है कैसा सकल विश्व में फ़ैला
 कि मानो हवाओं में ज़हर है घोला!!


महाकाल ही रचेंगे कुछ ऐसी अब लीला
जिससे निरोग होगी पूरी ही इला!
दूर जादा नहीं है  वो दिन आने वाला
होगा संसार अब जैसे था पहला!! 

जमीं हरी भरी होगी अम्बर होगा नीला
हर तरफ़ खुशी होगी रंगीन होगी हर बेला!
फिर ना कोई रहेगा तनहा और अकेला 
ना रहेगी दुविधा कोई  ना रहेगा कोई झमेला!!


 लेकिन इतनी सी बात ये भीड़ समझ जाएगी 
 प्रकृति को छेडा अब तो दुनियां ना बच पाएगी!!
 
 यही समय है संकल्प करो अब कुछ ऐसा नहीं करेंगे
  प्रकृति से जीव हत्या कर अपना पेट नहीं भरेंगे!!


                  Writer->>   सूर्यपाल सिंह जादौन
                  
                 Tiltle-@## आपदाओं का दौर आपदाओं का दौर
आज हवाओं का रूख ऐसा है बदला
मौत का मंज़र हर तरफ़ है फ़ैला!
जन- जन से हो गया है अकेला
हुआ है कैसा ये मौसम अलबेला!!

सबको ही जाना है एक दिन अकेला
पर विधाता ने कौन-सा खेल ये खेला!
ये दृश्य है कैसा सकल विश्व में फ़ैला
 कि मानो हवाओं में ज़हर है घोला!!


महाकाल ही रचेंगे कुछ ऐसी अब लीला
जिससे निरोग होगी पूरी ही इला!
दूर जादा नहीं है  वो दिन आने वाला
होगा संसार अब जैसे था पहला!! 

जमीं हरी भरी होगी अम्बर होगा नीला
हर तरफ़ खुशी होगी रंगीन होगी हर बेला!
फिर ना कोई रहेगा तनहा और अकेला 
ना रहेगी दुविधा कोई  ना रहेगा कोई झमेला!!


 लेकिन इतनी सी बात ये भीड़ समझ जाएगी 
 प्रकृति को छेडा अब तो दुनियां ना बच पाएगी!!
 
 यही समय है संकल्प करो अब कुछ ऐसा नहीं करेंगे
  प्रकृति से जीव हत्या कर अपना पेट नहीं भरेंगे!!


                  Writer->>   सूर्यपाल सिंह जादौन
                  
                 Tiltle-@## आपदाओं का दौर आपदाओं का दौर

आपदाओं का दौर