मैं बिरहन में चातक बन बाट जोहती रहूँ पिया की, तृष्णा है तो मात्र ,पूर्ण कर पाऊँ कामना हिय की। मेरे लिखे पत्रों का क्यों तुम प्रत्युत्तर नहीं दे पाए? कहो प्रिय तुम क्यों सावन में इस बार नहीं आ पाए? अधीर चंचल अपने मन को मैं कैसे समझाऊँ? बरस रहे हैं मेघ विवशता उन्हें कैसे बतलाऊँ? तुम सीमा पर प्रहरी बन शत्रुओं से देश बचाना, ना सजन अब की बार तुम लौट नहीं आना। तुम कर लेना महसूस पहली बारिश की छुअन को , लगा लेना तुम हृदय से मेरे मन-मस्तिष्क की अगन को। तुम अपने कर्तव्य पालन को भलीभाँति पूर्ण करना, बहे जो अश्रु की धार, नैनों के कोर में ही छुपा देना। फिर अगले बरस जब तुम लौट आओगे, नैनों की बरसात से ही मुझे भिगाओगे। मेरा हर तीज-त्योहार तब ही मनाया जाएगा, जब लौट मेरा साजन सरहद से वापस आएगा। सावन की बिजलियाँ और तुम्हारी यादें #सावन #यादें #सरहद #सैनिक