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ख़ाली ख़ाली कमरे सा मैं, टूटी फूटी दीवार रहा..! उसक

ख़ाली ख़ाली कमरे सा मैं,
टूटी फूटी दीवार रहा..!

उसके प्रेम में पागल,
उसके लिए ही बीमार रहा..!

हर रंग है उसमें सुना हैं मैंने,
रंगों सा उसका व्यवहार रहा..!

कभी काली घटा ज़ुल्फ़ों को हटा,
बारिश में भीगता रविवार रहा..!

हरा रहा खुशियों से भरा रहा,
कभी आईने से ही डरा रहा..!

सुर्ख़ियों सा भटकता रहता हरदम,
यूँ चलता फिरता अख़बार रहा..!

रंगहीन समझ छोड़ गए वो,
जिनके लिए मैं बेकार रहा..!

अपनाया जिसने दफ़नाया दुःख को,
उसके लिए बरक़रार रहा..!

बहुमत मिला न कभी किसी से,
पर ख़्वाहिशों की सरकार रहा..!

ग़म देकर सब ख़ुशियाँ ले गए,
ये कैसा मैं दरबार रहा..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #outofsight #khaalikamra