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बस अपने मन की लिखता हूं, न ख़िताबो,दादों के लिए बिक

बस अपने मन की लिखता हूं,
न ख़िताबो,दादों के लिए बिकता हूँ।
जिसको जैसा ठीक लगे,
वैसा मुझे वो तौल ले।
किसी की बिसात नहीं,
की मेरा कोई मोल ले।

सच को सच कहता हूं,
किसी से द्वेष ना रखता हूँ।
(बस अपने मन की लिखता हूँ।)
झूठ कपट छल न करता हूँ,
जो जैसा है उसको वैसा लिखता हूं।
(बस अपने मन की लिखता हूं)।
लिखने में है कष्ट कई,
पर फिर मैं भी लिखता हूँ।

अंतरात्मा की आवाज़ को,
शब्दों की सूरत में गढ़ता हूँ।
(बस अपने मन की लिखता हूं) अंतस
बस अपने मन की लिखता हूं,
न ख़िताबो,दादों के लिए बिकता हूँ।
जिसको जैसा ठीक लगे,
वैसा मुझे वो तौल ले।
किसी की बिसात नहीं,
की मेरा कोई मोल ले।

सच को सच कहता हूं,
किसी से द्वेष ना रखता हूँ।
(बस अपने मन की लिखता हूँ।)
झूठ कपट छल न करता हूँ,
जो जैसा है उसको वैसा लिखता हूं।
(बस अपने मन की लिखता हूं)।
लिखने में है कष्ट कई,
पर फिर मैं भी लिखता हूँ।

अंतरात्मा की आवाज़ को,
शब्दों की सूरत में गढ़ता हूँ।
(बस अपने मन की लिखता हूं) अंतस