ग़ज़ल १२२२ १२२२ १२२ किताब ए हुस्न पढ़ना चाहिए था । इनायत में सँवरना चाहिए था।। खलिश सी रह गई दिल में हमारे, उन्हें इजहार करना चाहिए था ।। वो रश्के हूर दुनिया से छुपी क्यों, उसे पुर नूर बनना चाहिए था।। न होता इश्क में बीमार कोई, सँभल कर हुस्न चलना चाहिए था।। अगर जादूगरी थी इश्क में तो, उसे बेमौत मरना चाहिए था। जरा सा पूछ लेता कैफियत वो, न गैरों सा मुकरना चाहिए था। चली आती हैं अक्सर मुश्किलें तो, अपेक्षा को सँभलना चाहिए था। Apeksha vyas Bhilwara #किताब ए हुस्न समझना चाहिए था#मेरी कलम से #✍#❤💕