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एक मैना खुले आकाश मे उड़ने को आकुल थी नापेगी आसमा

एक मैना खुले आकाश मे उड़ने को आकुल थी

नापेगी आसमां किसी दिन बस यही सोच के व्याकुल थी

मगर कैद थी वो कही, कही जा नही सकती थी

हौसले की उड़ान भरती ज़रूर थी मगर उड़ नही सकती थी

लेकिन उन हालातो मे भी वो चह चहाया करती थी

किसी रोज़ वो भी उड़ेगी आसमां मे  हौसला खुदको दिलाया करती थी

यूही बीते कई दिन, कई रातें, कई साल  उसके इंतज़ार मे

उड़ ना सकी बेबस मैना एक पल भी खुले आकाश मे

उसकी इसी बेबसी को देख ईश्वर भी परेशान था

मगर कब तक हौसला रख सकेंगी मैना यही तो उसका इमतिहां था

इस बात को मैना भी बड़ी अच्छी तरह जानती थी 

इसी लिए पूरी हिम्मत जुटा हर दिवस पंख पखारती थी

मगर उस मैना ने जो आकाश देखा था वो उसके उड़ने के लिए नही था

उस मैना का जहाँ घरौंदा था वो उसके रहने के लिए नही था

उस मैना की उड़ान तो आकाश की सीमा से भी परे थी

अंजान थी मैना की एक तंग शरीर मे वो प्यारी सी परी थी

खैर आज आज़ाद है वो मैना जहाँ चाहे उड़ सकती है

केवल हौसलो की ही नही पंखो से भी उड़ान भर सकती हैं

सूना जरूर लगेगा आंगन क्युकी यहाँ अब उसकी चह-चहाहट से सवेरा नही होगा

मगर किसने कहा की कभी भी इस आंगन उस मैना का बसेरा नही होगा

©Tarasha
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Tarasha

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