।। अनमोंल हो तुम ।। यूँ दामन छुड़ाकर जाने वाले मेरा क़सूर क्या है? ज़रा ये तो बता दो जिस चिंगारी में मै जलने वाली हूँ वो उठी कहाँ से तुम ये तो बता दो ! मै समर्पित थी हर रिश्तें के ख़ातिर दाग़ दामन पे लगा, मै चुप कैसे रहूँ ? जो भी हो सज़ा तुम दे देना मुझको किस हद तक हुँ दोषी? मै भी तो सुनूँ तुम बिन बताये गर यूँ चले गये क्या मै ख़ुद को कभी माफ़ कर पाऊँगी ? अपनी ज़िन्दगी के हर नाज़ुक रिश्ते को भला किस तरह अब मै निभा पाऊँगी ? मेरे अन्तर्मन में ये जो तरंग उठ रहे है शुन्यता के गर्त में मुझे लिये जा रहे है मेरे दोस्त ! मुझपर थोड़ा एहसान तो करो ऐसे नाता तोड़कर, मुझे बेज़ान ना करो । ।। अनमोंल हो तुम ।। यूँ दामन छुड़ाकर जाने वाले मेरा क़सूर क्या है? ज़रा ये तो बता दो जिस चिंगारी में मै जलने वाली हूँ वो उठी कहाँ से तुम ये तो बता दो !