अब कैसे कोई अपनों की पहचान करेगा, कि हर चेहरे के अंदर भी इक चेहरा होता है//
तपती रेत पे नंगे पैर चलते जाना है,सफर के आगे शायद*सहरा होता है//*मरुस्थल
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अब नहीं*मरासिम कोई,मेरे सफर की भीड़ में,अब गूंगी है ज़ुबान,शोर तो बहरा होता है//*परिचित