शीर्षक:– दरिया में फेंक आऊँगा गमों की एक पोटली बनाउँगा, दरिया में फेंक आऊँगा, मुसीबतों को सर पर उठाऊँगा, दरिया में फेंक आऊँगा, नाज़ुक से इस दिल पर भी, कई ज़ख्म जमा कर रखे हैं, कोरे पन्नों पर हिसाब लगाऊँगा, दरिया में फेंक आऊँगा, यादों के काफ़िले कदम आगे बढ़ाने से रोकते हैं हर घड़ी, हर काफ़िले को मुकाम दिलाऊँगा, दरिया में फेंक आऊँगा, आशाओं के सूरज से दूर, यूँ मकान बनाया ही गलत था मैंने, निराशा का बोरिया-बिस्तरा बँधाऊँगा, दरिया में फेंक आऊँगा, बढ़ना है आगे तो बदलना होगा वो दुःखी सा क़िरदार “साकेत", अपने पूर्व शख़्सियत की अर्थी सजाऊँगा , दरिया में फेंक आऊँगा। ©Saket Ranjan Shukla दरिया में फेंक आऊँगा.! . ✍🏻Saket Ranjan Shukla All rights reserved© . Like≋Comment Follow @my_pen_my_strength .