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अपनों से आज पराजय है। क्या यही जीवन की जय है।। मृ

अपनों से आज पराजय है।
क्या यही जीवन की जय है।।

मृत्यु का भय भयंकर है,
जीवन की राह में कंकर है,
निज क्रोध बना दिनकर है,
आत्मा तो अक्षय है।
क्या यही जीवन की जय है?

केवल सुख की आशा में,
धन वैभव की परिभाषा में,
झूठे मन की दिलासा में,
अपनों से आज पराजय है।
क्या यही जीवन की जय है?

जीवन का उपयोग नहीं,
धन का सदुपयोग नहीं,
मन से कोई निरोग नहीं,
पल पल प्रतीत प्रलय है।
क्या यही जीवन की जय है?

हर ओर हवा में अफ़वाहें,
सचमुच सच से सब घबराए,
है टिकी अखिल पर निगाहें,
सच सबसे बड़ा विजय है हां! यही जीवन की जय है?

रचना - अखिलानंद यादव
9450461087

©अखिलानंद यादव अखिलानंद यादव 
रतनपुरा मऊ

#Rose  SARKAR GORAKHPURI Neeraj
अपनों से आज पराजय है।
क्या यही जीवन की जय है।।

मृत्यु का भय भयंकर है,
जीवन की राह में कंकर है,
निज क्रोध बना दिनकर है,
आत्मा तो अक्षय है।
क्या यही जीवन की जय है?

केवल सुख की आशा में,
धन वैभव की परिभाषा में,
झूठे मन की दिलासा में,
अपनों से आज पराजय है।
क्या यही जीवन की जय है?

जीवन का उपयोग नहीं,
धन का सदुपयोग नहीं,
मन से कोई निरोग नहीं,
पल पल प्रतीत प्रलय है।
क्या यही जीवन की जय है?

हर ओर हवा में अफ़वाहें,
सचमुच सच से सब घबराए,
है टिकी अखिल पर निगाहें,
सच सबसे बड़ा विजय है हां! यही जीवन की जय है?

रचना - अखिलानंद यादव
9450461087

©अखिलानंद यादव अखिलानंद यादव 
रतनपुरा मऊ

#Rose  SARKAR GORAKHPURI Neeraj