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मैं ही मैं को ढूंढ़ रहा मैं ही हूं मुझसे हैरान म



मैं ही मैं को ढूंढ़ रहा
मैं ही हूं मुझसे हैरान 
मैंने ही ख़ुद को मिटा दिया
मैं ही हूं मेरी पहचान 

स्वर्ग - नरक अब कुछ नहीं
कहीं मिले न दिल को चैन
जब मन जागा तब भोर हुई
जब मन सोया तो हो गई  रैन

गुज़र जाएगा ये दौर भी
हमेशा टिके न कोई पीर
पर्वत सी पीर पिघल गई
निस्तब्ध है गंगा का नीर...
© abhishek trehan







 ♥️ Challenge-675 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। 

♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।


मैं ही मैं को ढूंढ़ रहा
मैं ही हूं मुझसे हैरान 
मैंने ही ख़ुद को मिटा दिया
मैं ही हूं मेरी पहचान 

स्वर्ग - नरक अब कुछ नहीं
कहीं मिले न दिल को चैन
जब मन जागा तब भोर हुई
जब मन सोया तो हो गई  रैन

गुज़र जाएगा ये दौर भी
हमेशा टिके न कोई पीर
पर्वत सी पीर पिघल गई
निस्तब्ध है गंगा का नीर...
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