यूं तो बस एक ये जरिया है , वक़्त के कटने का , पर कटता क्यों नहीं ये कमबख्त रात दिन । यूं तो एक उम्र मुकर्रर है हमारी , पर सीढ़ियां है यही ये कमबख्त रात दिन । गुजरते है हम कैसे इन सीढ़ियों से, पूछो हमारे वक़्त के बंधे इन पैरो से हमारे। ©FARHAN #Waqt #wordporn #Twowords