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गिरा इस कदर था कि उठने की आस न थी, मंजिल सामने थी,

गिरा इस कदर था कि उठने की आस न थी,
मंजिल सामने थी, लेकिन पैरों ने जान न थी,
पर मैं उठ गया,
क्योंकि
मेरी मां को दिए हुए वादों के आगे,
मंजिल की क्या औकात थी।

©विक्रम कश्यप मां ओ मेरी मां 

#creativeminds  Anita Sahani prachi
गिरा इस कदर था कि उठने की आस न थी,
मंजिल सामने थी, लेकिन पैरों ने जान न थी,
पर मैं उठ गया,
क्योंकि
मेरी मां को दिए हुए वादों के आगे,
मंजिल की क्या औकात थी।

©विक्रम कश्यप मां ओ मेरी मां 

#creativeminds  Anita Sahani prachi

मां ओ मेरी मां @Anita Sahani @prachi">#creativeminds Anita Sahani prachi