गिरा इस कदर था कि उठने की आस न थी, मंजिल सामने थी, लेकिन पैरों ने जान न थी, पर मैं उठ गया, क्योंकि मेरी मां को दिए हुए वादों के आगे, मंजिल की क्या औकात थी। ©विक्रम कश्यप मां ओ मेरी मां #creativeminds