कितने खूबसूरत थे वो दिन और रात, दिन भर माँ का प्यार, साँझ ढ़लते पापा का दुलार! गड्ढों गुड़ियों सँग घर घर का खेल, दोस्तों सँग आंख-मिचौली, मन में ना कोई सवाल ना ही कोई भेदभाव! पलभर की नाराज़गी, फ़िर मीठी मुस्कान, खेल कर थकते हम,दर्द माँ महसूस करती चारों ओर बस मेरी आवाज़ ही गूँजती! छोटे छोटे हथेलियों से माँ की उँगलियों को पकड़ जब चलती, बड़े शान से वो घूमती फिरती! वो दिन भी क्या दिन थे "नेहा" ना बड़े होने की चिंता, ना कुछ खोने पाने की परवाह हुआ करती! 🌠💠𝐂𝐡𝐚𝐥𝐥𝐞𝐧𝐠𝐞 -𝟲💠🌠 #𝐜𝐨𝐥𝐥𝐚𝐛_𝐰𝐢𝐭𝐡_𝐚𝐚𝐩𝐤𝐢_𝐥𝐞𝐤𝐡𝐧𝐢 आज की रचना के लिए हमारा शब्द है 🎈📥 ⬇🔻⬇🔻⬇🔻 ⬇ 🔻⬇ 🔻⬇ 🎀वो दिन भी क्या दिन थे!🎀 🎗🎗🎗🎗🎗🎗🎗🎗