वबा और मज़दूर एक मज़दूर जा रहा है घर अपने काँधे पे लाद कर लाशा अपनी खुशियों का आरज़ुओं का सख्त गर्मी में, धूप को ओढ़े पांव में लेके कर्ब के छाले भूक और प्यास से गुज़रते हुए थोड़ा जीते और थोड़ा मरते हुए तंगदस्ती को याद करते हुए शहर की गलियों और सड़कों पर रिज़्क़ को ढूंढने वो निकला था उसकी किस्मत के जैसे ही शायद आज बाज़ार बन्द थे सारे शहर में गलियों में और सड़कों पर हर जवाँ लब और बूढ़े होंटों पर एक मुहलिक वबा का चर्चा था लोग सहमे हुए घरों में थे काम धंदा भी बन्द था सारा भूक से वो निढाल, चलते हुए अपनी नाकामियों पे रोते हुए फेक्रो फ़ाक़ा से तंग आये हुए मौत से हाथ को मिलाते हुए एक मज़दूर जा रहा है घर मौत शायद उसे न जीने दे निहाल जालिब #coronavirus #covid19 #labourpain دانش اثری Suman Zaniyan Ritika suryavanshi