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जाने कभी गुलाब लगती है, जाने कभी शबाब लगती है, ते

जाने कभी  गुलाब लगती है,
जाने कभी शबाब लगती है,
तेरी आँखें ही बहारों का ख्वाब लगती है ,
मैं पिए रहूँ या न पिए रहूँ 
लड़खड़ाकर ही चलता हूँ
क्योंकि तेरी गली की हवा ही मुझे शराब लगती है।
जाने कभी  गुलाब लगती है,
जाने कभी शबाब लगती है,
तेरी आँखें ही बहारों का ख्वाब लगती है ,
मैं पिए रहूँ या न पिए रहूँ 
लड़खड़ाकर ही चलता हूँ
क्योंकि तेरी गली की हवा ही मुझे शराब लगती है।
yuvrajsingh6551

Yuvraj Singh

New Creator