जाने कभी गुलाब लगती है, जाने कभी शबाब लगती है, तेरी आँखें ही बहारों का ख्वाब लगती है , मैं पिए रहूँ या न पिए रहूँ लड़खड़ाकर ही चलता हूँ क्योंकि तेरी गली की हवा ही मुझे शराब लगती है।