मैं तो बुझा हुआ दीपक हूँ, तू जलाने की कोशिश मत कर। बाती मेरी जल चुकी है, आग लगाने की कोशिश मत कर।। ये दुनियादारी ये समझदारी, तू उलझाने की कोशिश मत कर। समझ समझ के समझ चुका हूँ, तू और समझाने का कोशिश मत कर।। सजाया जाता है खूब हर त्योहार पर, तब मिलूँगा हर कोने में हर द्वार पर। त्योहार जो पार हुआ न ढूँढना तुम यहाँ, मिलूँगा मैं फिर वहीं कचरे के ढेर पर।। टूट गया हूँ लगी जो मुझे ठोकर, त्याग दिया तुमने अपशगुन जानकर। मेरी आत्मा मेरी बाती अब जल चुकी है, अब तू फिरसे जलाने की कोशिश मत कर।। बाती मेरी जल चुकी है, आग लगाने की कोशिश मत कर।। ©Ajay मैं तो बुझा हुआ दीपक हूँ, तू जलाने की कोशिश मत कर। बाती मेरी जल चुकी है, आग लगाने की कोशिश मत कर।। ये दुनियादारी ये समझदारी, तू उलझाने की कोशिश मत कर। समझ समझ के समझ चुका हूँ,