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Sindoori (Part-1) ये काव्य कथा कंचन सिंदूरी मेरे

Sindoori (Part-1)

ये काव्य कथा कंचन सिंदूरी
मेरे मन की बात अधूरी
व्योम-व्योम फिरता बेचारा
कभी समंदर में गोतातुर
कभी धरा पर मारा मारा
मिलता था पत्तों से जाकर
पर्ण कुटीर में मौका पाकर
तुम हरे नहीं सिंदूरी हो
फिर हंसता था धोखा खाकर
कहीं मिलते थे बेबाक परिंदे
गगनचुंब के रखवाले
गुटूर-गुटूर करते हमदर्दी
खंडहर में मकड़ी के जाले
मृगतृष्णा उस मृगनयनी की 
वो धुरा नयन से जा न सकी
रे साकी मदिरा और पिला
वो मधुरा पान खिला न सकी
मैला मैं, मैली काया 
मन मैला खाक मिला उस बिन
इक अरसा तब से बीत गया 
इक प्याला और पिला मुझको
अब मुझसे सिंदूरी रीत गया

©Gautam
  Sindoori (Part-1)
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Gautam

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