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कह डाले अपने सारे राज, जिनके कांधे पे सर रख कर करी

कह डाले अपने सारे राज, जिनके कांधे पे सर रख कर
करी है हालत यूं की जा भी  पाये न चार काँधे पे सज कर

दुनिया देखनी चाही जिसके साथ हमसफर बन कर
उस जालिम ने आखे ही नोच डाली मेरी हैवान बन कर


हाथो में हाथ डाल साथ- साथ चलने का वादा कर 
डरिंदे ने बदन से ही दिया हाथ पाँव को  पृथक कर

बहुत प्यार से सहेजे थे जीवन के सपने बुन कर
तड़प गई रूह मेरी अपने शरीर के टुकड़े चुन  कर

 गलती थी मेरी ? कि मैंने एतबार कर लिया था सब सहन कर
या समाज में जी रहा है इंसान जानवर का नकाब पहन कर

©arti Saxena
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