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एक शादी के निमंत्रण पर जाना था... पर मेरा वहाँ जान

एक शादी के निमंत्रण पर जाना था... पर मेरा वहाँ जाने का बिल्कुल मन नहीं था... क्योंकि गाँव की शादी  में मुझे कोई रुचि नहीं थीं..।लेकिन घरवालों की जिद्द की वजह से मैं उनके साथ चल दिया...।वहाँ पहुंचकर.....बहाना बनाकर मैं गाँव की गलियों में विचरण करने निकल गया..। घरवालों ने शादी के कार्यक्रम तक आने का कहा..। उनकी बातों को अनसुना कर वहाँ से निकल गया..। विचरण करते करते मैं गाँव के बाहर आ गया था..। 
वहाँ  मैने देखा... एक बड़ी सी लग्जरी गाड़ी में से एक सज्जन उतरे... उनके पहनावे और चाल चलन में उनकी रईसी साफ़ झलक रहीं थीं...। उनकी उम्र यहीं कोई पचास की होगी..। 
मैने देखा वो सज्जन एक पालिथिन लेकर एक पेड़ के चबुतरे पर गए... फिर उस पालिथिन को चबुतरे पर उड़ेल दिया और आओ आओ की आवाज निकालने लगे... पास के खेतों में चारा चरती हुई कुछ चार पांच गायें आवाज सुनते ही वहाँ आई और गुड़ जो उस सज्जन ने डाला था वो खाने लगी...। कुछ गायों को वो अपने हाथ से खिला रहे थे.. कुछ स्वयं खा रहीं थीं..। वो प्यार से सभी गायों के कभी सिर पर तो कभी गले पर हाथ फेर रहें थें..। कुछ मिनटों बाद सभी गाएं वहाँ से चलीं गई...। यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था... लेकिन उसके बाद जो हुआ वो अविस्मरणीय और आश्चर्य से भरा हुआ था..। 
मैने देखा.... सभी गायों के चले जाने के बाद उस सज्जन ने वहाँ बचा हुआ गायों का जूठा गुड़ उठाया और खुद खा लिया...। तीन चार टुकड़े उन्होंने उठाएं और खाकर वहाँ से वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए...। ये सब देखकर मैं सोच में पड़ गया...। इतना अमीर... पैसे वाला शख्स जूठा गुड़ क्यूँ खा रहा हैं.... वो भी गायों का जूठा... जो वो खुद ही लाया था... खाना था तो पहले खुद के लिए निकाल देता..। तरह तरह के सवाल दिमाग में घुम रहें थे..। जिझासा वश में दौड़ कर उनके पास गया और उनकों आवाज देकर रोका :- रुकिए महाराज... कुछ देर ठहरिए... महानुभव मैंने अभी अभी जो देखा... वो मेरे ह्रदय में सौ सवाल पैदा कर गई हैं...। कृपया उनका समाधान किजिए वरना उधल पुथल चलतीं रहेगी..। 
वो सज्जन मुस्कुराए और बोले:- बोलो बेटा... क्या जानना चाहते हो..। 
मैने कहा :- महाराज आप खुद इतने अमीर हैं फिर भी आपने गायों का बचा हुआ जूठा गुड़ ही क्यूँ खाया..? 
वो सज्जन मुस्कुराएं और मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे उसी चबुतरे के पास लेकर गए और बोले:- बेटा बात आज से पैतिंस साल पहले की हैं.... घर में आंतरिक कलह और रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आकर मैनें अपना घर छोड़ दिया... मैं भागते भागते इस जगह  आ पहुंचा...। लेकिन दो दिन बाद ही मेरी हिम्मत जवाब देने लगी...। भूख की वजह से शरीर बेहाल हो गया...। यहाँ इसी जगह पर मैंने देखा की एक सज्जन गुड़ के कुछ टुकड़े गायों के लिए डालकर गया था..। तब यहाँ ये चबुतरा नहीं था...। पीपल का बड़ा सा पेड़ था.। मैं बेहाल सा होकर उसी पेड़ के नीचे बेसुध होकर पड़ा था...। मैने देखा वो सज्जन गुड़ डालकर चला गया... तब कुछ एक दो गाएं वहाँ आई और गुड़ को सिर्फ सुंघ कर वापस लौट गई....। मैं भूख के मारे निठाल सा हो गया था.. कोई रास्ता ना देख... मैने वो मिट्टी में रखा हुआ गुड़ साफ़ किया और झट से खा गया..। दो दिन बाद पेट में  कुछ गया तो एक शांति सी मिली.... मैं वहीं उस पेड़ के नीचे सो गया..। सुबह हुई... अपने नित्य कर्म करके मैं काम की तलाश में निकल पड़ा....। लेकिन दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था...। कहीं काम नहीं मिला.. थक कर भूख से बेहाल होकर शाम ढलते ही मैं फिर उसी जगह आ पहुंचा...। आज भी वो सज्जन आए... गुड़ डाला और चले गए...। कल ही की तरह गायें आई.. गुड़ को देखा और बिना खाए चलीं गई...। मैं भी भूखा तो था ही... बिना समय गंवाएं झट से सारा गुड़ खा गया... और उसी पेड़ के नीचे सो गया..। अगले दिन फिर काम की तलाश में निकल गया...। इस बार ऊपरवाले को मुझपर दया आई और मुझे एक ढाबे पर काम मिल गया..। अब मैं वहीं रहकर काम करने और रहने लगा..। कुछ दिन बाद मालिक ने कुछ पैसे दिए..... ।मैनें एक किलो  गुड़ लिया और ना जाने कौनसी शक्ति थीं जो मुझे वहाँ खींच रहीं थी...।वहां से सात किमी पैदल चलकर मैं उसी पेड़ के पास आया और सारा गुड़ डाल दिया....। गाएं भी नजदीक ही थीं...मेरे आवाज लगाते ही तुरंत आ गई..।इस बार मैने देखा की गाएं ने सारा गुड़ खा लिया...। यानि उन दो दिनों मैं उन गायों ने जानबूझकर गुड़ नहीं खाया था...। उन्होंने मेरे लिए गुड़ छोड़ दिया था...। उनकी ये ममता देखकर मेरा दिल भर आया..। मैं ढाबे पर आकर सोचता रहा...। कुछ समय बाद ही मुझे एक फर्म में काम मिला...। निरंतर कड़ी मेहनत से मैं बहुत जल्द एक फर्म का मालिक बन गया..। शादी हुई... बच्चे हुएं...। दिन ब दिन मैं तरक्की करता गया...। लेकिन अपने इस लंबे सफर में मैने कभी गाय माता को नहीं भुलाया...। मैं अक्सर यहाँ आता रहता हूँ और इनको गुड़ खिलाने के साथ साथ इनका स्नेह पाता हूँ...। आज मैं पांच फर्म का मालिक हूँ...। धन दौलत की कोई कमी नहीं हैं... लेकिन जो सुकून मुझे यहाँ आकर मिलता हैं... वो कहीं नहीं मिलता...। जो मिठास इनके जूठे गुड़ में मिलती हैं... वो किसी व्यंजन में नहीं मिलतीं..। इन गायों की ममता की वजह से ही मैं आज जिंदा हूं...। इनका उपकार तो मैं कभी नहीं भुला सकता..। मैं लाखों रुपये गौशाला में दान करता हूँ... लेकिन इन गायों का स्नेह मुझे आजभी यहाँ खींच लाता हैं...। 
ऐसा कहते कहते वो सज्जन भावुक हो गए और वहाँ से चले गए...। 
मैं कुछ पल उनको जातें देखता रहा... फिर ना जाने क्या सोचता हुआ... मैने भी वहाँ रखा एक गुड़ का टुकड़ा लिया और अपनी जिहृवा पर रखा.... सचमुच उसके जैसी मिठास मैने कभी महसूस नहीं की थी..। किसी ने सच ही कहा हैं गाय सच में हमारी माता तुल्य होतीं हैं..। उनकी ममता सच में अद्भुत हैं..। मैं उनके बारे में सोचता हुआ...। शादी के कार्यक्रम में शरीक होने चल पड़ा और इस बार दिल से मैने सारे कार्यक्रम का आनंद उठाया...।

©Diya Jethwani कर्म 

#PARENTS
एक शादी के निमंत्रण पर जाना था... पर मेरा वहाँ जाने का बिल्कुल मन नहीं था... क्योंकि गाँव की शादी  में मुझे कोई रुचि नहीं थीं..।लेकिन घरवालों की जिद्द की वजह से मैं उनके साथ चल दिया...।वहाँ पहुंचकर.....बहाना बनाकर मैं गाँव की गलियों में विचरण करने निकल गया..। घरवालों ने शादी के कार्यक्रम तक आने का कहा..। उनकी बातों को अनसुना कर वहाँ से निकल गया..। विचरण करते करते मैं गाँव के बाहर आ गया था..। 
वहाँ  मैने देखा... एक बड़ी सी लग्जरी गाड़ी में से एक सज्जन उतरे... उनके पहनावे और चाल चलन में उनकी रईसी साफ़ झलक रहीं थीं...। उनकी उम्र यहीं कोई पचास की होगी..। 
मैने देखा वो सज्जन एक पालिथिन लेकर एक पेड़ के चबुतरे पर गए... फिर उस पालिथिन को चबुतरे पर उड़ेल दिया और आओ आओ की आवाज निकालने लगे... पास के खेतों में चारा चरती हुई कुछ चार पांच गायें आवाज सुनते ही वहाँ आई और गुड़ जो उस सज्जन ने डाला था वो खाने लगी...। कुछ गायों को वो अपने हाथ से खिला रहे थे.. कुछ स्वयं खा रहीं थीं..। वो प्यार से सभी गायों के कभी सिर पर तो कभी गले पर हाथ फेर रहें थें..। कुछ मिनटों बाद सभी गाएं वहाँ से चलीं गई...। यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था... लेकिन उसके बाद जो हुआ वो अविस्मरणीय और आश्चर्य से भरा हुआ था..। 
मैने देखा.... सभी गायों के चले जाने के बाद उस सज्जन ने वहाँ बचा हुआ गायों का जूठा गुड़ उठाया और खुद खा लिया...। तीन चार टुकड़े उन्होंने उठाएं और खाकर वहाँ से वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए...। ये सब देखकर मैं सोच में पड़ गया...। इतना अमीर... पैसे वाला शख्स जूठा गुड़ क्यूँ खा रहा हैं.... वो भी गायों का जूठा... जो वो खुद ही लाया था... खाना था तो पहले खुद के लिए निकाल देता..। तरह तरह के सवाल दिमाग में घुम रहें थे..। जिझासा वश में दौड़ कर उनके पास गया और उनकों आवाज देकर रोका :- रुकिए महाराज... कुछ देर ठहरिए... महानुभव मैंने अभी अभी जो देखा... वो मेरे ह्रदय में सौ सवाल पैदा कर गई हैं...। कृपया उनका समाधान किजिए वरना उधल पुथल चलतीं रहेगी..। 
वो सज्जन मुस्कुराए और बोले:- बोलो बेटा... क्या जानना चाहते हो..। 
मैने कहा :- महाराज आप खुद इतने अमीर हैं फिर भी आपने गायों का बचा हुआ जूठा गुड़ ही क्यूँ खाया..? 
वो सज्जन मुस्कुराएं और मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे उसी चबुतरे के पास लेकर गए और बोले:- बेटा बात आज से पैतिंस साल पहले की हैं.... घर में आंतरिक कलह और रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आकर मैनें अपना घर छोड़ दिया... मैं भागते भागते इस जगह  आ पहुंचा...। लेकिन दो दिन बाद ही मेरी हिम्मत जवाब देने लगी...। भूख की वजह से शरीर बेहाल हो गया...। यहाँ इसी जगह पर मैंने देखा की एक सज्जन गुड़ के कुछ टुकड़े गायों के लिए डालकर गया था..। तब यहाँ ये चबुतरा नहीं था...। पीपल का बड़ा सा पेड़ था.। मैं बेहाल सा होकर उसी पेड़ के नीचे बेसुध होकर पड़ा था...। मैने देखा वो सज्जन गुड़ डालकर चला गया... तब कुछ एक दो गाएं वहाँ आई और गुड़ को सिर्फ सुंघ कर वापस लौट गई....। मैं भूख के मारे निठाल सा हो गया था.. कोई रास्ता ना देख... मैने वो मिट्टी में रखा हुआ गुड़ साफ़ किया और झट से खा गया..। दो दिन बाद पेट में  कुछ गया तो एक शांति सी मिली.... मैं वहीं उस पेड़ के नीचे सो गया..। सुबह हुई... अपने नित्य कर्म करके मैं काम की तलाश में निकल पड़ा....। लेकिन दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था...। कहीं काम नहीं मिला.. थक कर भूख से बेहाल होकर शाम ढलते ही मैं फिर उसी जगह आ पहुंचा...। आज भी वो सज्जन आए... गुड़ डाला और चले गए...। कल ही की तरह गायें आई.. गुड़ को देखा और बिना खाए चलीं गई...। मैं भी भूखा तो था ही... बिना समय गंवाएं झट से सारा गुड़ खा गया... और उसी पेड़ के नीचे सो गया..। अगले दिन फिर काम की तलाश में निकल गया...। इस बार ऊपरवाले को मुझपर दया आई और मुझे एक ढाबे पर काम मिल गया..। अब मैं वहीं रहकर काम करने और रहने लगा..। कुछ दिन बाद मालिक ने कुछ पैसे दिए..... ।मैनें एक किलो  गुड़ लिया और ना जाने कौनसी शक्ति थीं जो मुझे वहाँ खींच रहीं थी...।वहां से सात किमी पैदल चलकर मैं उसी पेड़ के पास आया और सारा गुड़ डाल दिया....। गाएं भी नजदीक ही थीं...मेरे आवाज लगाते ही तुरंत आ गई..।इस बार मैने देखा की गाएं ने सारा गुड़ खा लिया...। यानि उन दो दिनों मैं उन गायों ने जानबूझकर गुड़ नहीं खाया था...। उन्होंने मेरे लिए गुड़ छोड़ दिया था...। उनकी ये ममता देखकर मेरा दिल भर आया..। मैं ढाबे पर आकर सोचता रहा...। कुछ समय बाद ही मुझे एक फर्म में काम मिला...। निरंतर कड़ी मेहनत से मैं बहुत जल्द एक फर्म का मालिक बन गया..। शादी हुई... बच्चे हुएं...। दिन ब दिन मैं तरक्की करता गया...। लेकिन अपने इस लंबे सफर में मैने कभी गाय माता को नहीं भुलाया...। मैं अक्सर यहाँ आता रहता हूँ और इनको गुड़ खिलाने के साथ साथ इनका स्नेह पाता हूँ...। आज मैं पांच फर्म का मालिक हूँ...। धन दौलत की कोई कमी नहीं हैं... लेकिन जो सुकून मुझे यहाँ आकर मिलता हैं... वो कहीं नहीं मिलता...। जो मिठास इनके जूठे गुड़ में मिलती हैं... वो किसी व्यंजन में नहीं मिलतीं..। इन गायों की ममता की वजह से ही मैं आज जिंदा हूं...। इनका उपकार तो मैं कभी नहीं भुला सकता..। मैं लाखों रुपये गौशाला में दान करता हूँ... लेकिन इन गायों का स्नेह मुझे आजभी यहाँ खींच लाता हैं...। 
ऐसा कहते कहते वो सज्जन भावुक हो गए और वहाँ से चले गए...। 
मैं कुछ पल उनको जातें देखता रहा... फिर ना जाने क्या सोचता हुआ... मैने भी वहाँ रखा एक गुड़ का टुकड़ा लिया और अपनी जिहृवा पर रखा.... सचमुच उसके जैसी मिठास मैने कभी महसूस नहीं की थी..। किसी ने सच ही कहा हैं गाय सच में हमारी माता तुल्य होतीं हैं..। उनकी ममता सच में अद्भुत हैं..। मैं उनके बारे में सोचता हुआ...। शादी के कार्यक्रम में शरीक होने चल पड़ा और इस बार दिल से मैने सारे कार्यक्रम का आनंद उठाया...।

©Diya Jethwani कर्म 

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