मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से, उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो| उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने, कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो| उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र, जज्बातों को खामोश ही ज़ुल्म सहने दो| उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… वक़्त बदलता है ये उसकी अदा है ‘अंकुर’, जहाँ रुख हो लहरों का, जिंदगी को बहने दो| उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… #मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से, उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो| उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने, कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो| उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र,