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मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से, उन सवालों को

मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से,
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो|

उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने,
कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र,
जज्बातों को खामोश ही ज़ुल्म सहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

वक़्त बदलता है ये उसकी अदा है ‘अंकुर’,
जहाँ रुख हो लहरों का, जिंदगी को बहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… #मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से,
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो|

उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने,
कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र,
मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से,
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो|

उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने,
कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र,
जज्बातों को खामोश ही ज़ुल्म सहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

वक़्त बदलता है ये उसकी अदा है ‘अंकुर’,
जहाँ रुख हो लहरों का, जिंदगी को बहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो… #मिलेगा क्या तुम्हें बयाने बेखुदी से,
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो|

उसूल तुमसे पूछकर नहीं बनाये थे ज़माने ने,
कहते हैं जो लोग उन्हें कहने दो|
उन सवालों को ज़हन में ही रहने दो…

बुझने मत देना शम्मा ए वफ़ा हमसफ़र,