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कभी चेहरा सुर्ख गुलाब था, आज झुर्रियों का श्रृंग

कभी चेहरा सुर्ख गुलाब था, 
आज झुर्रियों  का श्रृंगार है !
कभी परिवार की धुरी थी वो 
आज अपनों  के  ही प्यार का इंतज़ार है !!
आँखों मे सिर्फ ममता थी जिनके 
अब आंसुओं  के बाढ़ की,  ऐनक  ही पतवार है !
लफ़्ज़ों मे दुआ थी सिर्फ जिनकी 
होठों  पे आज  दिल के बोझ का वार  है !!
 उसने जिस घर मे करुणा ही बोई थी, 
आज  घर मे सिर्फ उसके रुदन की प्रताड़ है !!
जिसके हाथ सिर्फ उठते थे आशीर्वाद के लिए, 
आज  हाथों को उनके,,  सिर्फ साथ की दरकार है !!
जिन उंगलियों को पकड़ चलना सिखाया था उस  माँ ने, 
उम्र के इस पड़ाव पर वो क्यों?  उंगलियां छुड़ाने  को तैयार हैं !!!! #oldage #बूढी माँ
कभी चेहरा सुर्ख गुलाब था, 
आज झुर्रियों  का श्रृंगार है !
कभी परिवार की धुरी थी वो 
आज अपनों  के  ही प्यार का इंतज़ार है !!
आँखों मे सिर्फ ममता थी जिनके 
अब आंसुओं  के बाढ़ की,  ऐनक  ही पतवार है !
लफ़्ज़ों मे दुआ थी सिर्फ जिनकी 
होठों  पे आज  दिल के बोझ का वार  है !!
 उसने जिस घर मे करुणा ही बोई थी, 
आज  घर मे सिर्फ उसके रुदन की प्रताड़ है !!
जिसके हाथ सिर्फ उठते थे आशीर्वाद के लिए, 
आज  हाथों को उनके,,  सिर्फ साथ की दरकार है !!
जिन उंगलियों को पकड़ चलना सिखाया था उस  माँ ने, 
उम्र के इस पड़ाव पर वो क्यों?  उंगलियां छुड़ाने  को तैयार हैं !!!! #oldage #बूढी माँ
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pratibha

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