मै न बहुत दिनों से बीमार - बीमार सी लगती हूं खुद में ही बड़ी ही लाचार सी लगती हूं टूटकर बिखर गई हूं कई टुकड़ों में कांच की तरह फिर भी दुनियां की नज़रों में बड़ी होशियार सी लगती हूं मै न बहुत दिनों से बीमार - बीमार सी लगती हूं हर तरफ धुंआ - धुंआ सा उड़ा है लच्छे दार सी जैसे मै ही उस हर एक छल्ले की तलबगार सी लगती हूं पड़ी हूं जब से तेरे इश्क़ में आे जाने जाना तबसे ही और बीमार - बीमार सी लगती हूं मै न बहुत दिनों से....... कर ली हूं जब से कैद अपने नजरो में तुमको तबसे रोशनी में भी और नासूर सी लगती हूं हर शख़्स से ली हूं दुश्मनी मोल शायद अब मै इसलिए हर तरफ से मै ही गुनहगार लगती हूं मै न बहुत दिनों से........... गर कोई पड़ जाए मुसीबत में तो मै तत्पर हो मददगार सी लगती हूं खुद को कर देती हूं पल भर के लिए नुमाइश सी जैसे मै कोई सरेआम बाज़ार सी लगती हूं मै न बहुत दिनों से......... अंजली श्रीवास्तव my poet